रुपया ! यह एक ऐसा शब्द है जो हर किसी के कानों को सुकून देता है। हर इंसान चाहता है कि उसको रुपया मिले , उसकी जेब हमेशा रुपयों से भरी रहे।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि रुपयों का जन्म कैसे हुआ , कब और कहाँ से आया ‘रुपया’?
तो आइए, आज हम इस बारे में चर्चा करेंगे!
रुपया का भारत में प्रचलन
‘रुपया’ शब्द संस्कृत भाषा के ‘रूप्यकम्’ से प्राप्त हुआ है जिसका अर्थ ‘चाँदी’ है। भारत सभ्यता के अनुसार पाणिनि पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ‘रुपया’ शब्द का सबसे पहले प्रयोग किया था। ‘अर्थशास्त्र’ में भी चाणक्य ने ‘रुपया’ का ज़िक्र किया है। ‘रुपया’ अभी से ही नहीं बल्कि 6th शताब्दी से भारत में प्रचलित हैं।
रूपए का आगमन
शेर शाह के कार्यकाल के दौरान भारत में चाँदी के सिक्के आए। यह चाँदी के सिक्के मुग़ल, मराठा और ब्रिटिश इंडिया के राज्य तक चले। उस समय तांबे के 40 टुकड़े एक रुपये के बराबर थे। सन् 1862 में नए सिक्के आए जिन्हें शाही मुद्रा कहा गया। इस पर महारानी विक्टोरिया की एक तस्वीर और भारत का नाम था।आज़ादी के बाद भारत में पहला सिक्का सन् 1950 में आया था।
बैंक ऑफ़ हिंदुस्तान, जनरल बैंक ऑफ़ बंगाल और बिहार ने 10 रूपए के नोट साल 1861 में 10 रूपए के नोट से कागज़ी रुपयों की शुरुवात की। साल 1864 में 20 रूपए का नोट आया। साल 1872 में 5 रूपए का नोट आया। धीरे धीरे 100 रूपए, 50 रूपए, 200 रूपए के नोटों की भी शुरुवात हुई। साल 1938 से भारतीय रिज़र्व बैंक ने नोटों प्रोडक्शन शुरू किया।
‘रूपए’ का सिम्बल
भारत सर्कार ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया था जिसमें हर भारतीय भाग ले सकता था। इस प्रतियोगिता का विजेता उदय कुमार थे जिनका दिया हुआ डिज़ाइन भारत सरकार 2010 से इस्तेमाल कर रही है।
क्योंकि भारत के अलावा और भी ऐसे देश हैं जिनकी करेंसी रूपया है, इसलये भारत ने भारतीय रुपया के लिए एक नया सिंबल चुना।
भारत उन देशों में से है जो ‘रूपया’ अभी से नहीं बल्कि 6th शताब्दी से कर इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि ‘रूपया’ से पहले भारत में बार्टर सिस्टम का प्रचलन था।