हॉस्पिटल तो आम बात है, लेकिन हॉस्पिटल ट्रैन? यह थोड़ा हट कर है! आपको यह बात जान कर गर्व होगा कि विश्व की पहली हॉस्पिटल ट्रैन भारत में ही बनी थी।
67,000 किलोमीटर का सफर तय कर चुकी जीवन रेखा एक्सप्रेस ने अब तक एक मिलियन से ज़्यादा मरीज़ों को बीमारियों से छुटकारा दिलाया है और एक लाख से ऊपर सर्जरीज़ करी हैं।
स्थापना
16 जुलाई 1991 को जीवन रेखा एक्सप्रेस ने अपना पहला सफर तय किया था। इसका मक़सद दूर-दराज़ के इलाकों में पहुँच कर मेडिकल सहायता पहुँचाना है। इम्पैक्ट इंडिया फाउंडेशन नाम की एक मुंबई की संस्था ने इस आईडिया को मिनिस्ट्री ऑफ़ रेलवेज़ तक पहुँचाया। मिनिस्ट्रीज ऑफ़ रेलवेज़ और इम्पैक्ट इंडिया फाउंडेशन के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार भारतीय रेलवेज़ तीन कोच का डब्बा उसमें पानी और बिजली के सप्प्लाई की ज़िम्मेदारी लेगी और इम्पैक्ट इंडिया फाउंडेशन ग़रीबों को मेडिकल सहायता देगी। यहाँ बड़ी से बड़ी सर्जरी से लेकर कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज होता है।
अब तक एक मिलियन से ज़्यादा लोगों का इलाज हो चुका है
ट्रैन के लोकेशन पर पहुँचने से पहले एक मेडिकल टीम को भेजा जाता है। वह टीम वहाँ की मेडिकल ज़रूरतों का डाटा इकठ्ठा करती है। लोकेशन पर रह रहे ऐसे लोग जिन्हें मेडिकल सर्विस की ज़रुरत है उनके पूरे डिटेल्स लिए जाते है और उसके बाद उनका इलाज होता है।
शुरुआत में ट्रैन में सिर्फ कैटरेक्ट, पोलियो जैसी बीमारियों का इलाज होता था पर समय के साथ वहाँ प्लास्टिक सर्जरी,डेंटल सर्जरी, एपिलेप्सी सर्विस, कैंसर जैसी बीमारियों का भी इलाज शुरू हुआ
इस आईडिया से भारत जैसे देश का बहुत भला हुआ है। ग़रीबी के कारण बहुत से लोग अपना इलाज नहीं करवा पाते हैं पर जीवन रेखा एक्सप्रेस की वजह से बहुत से लोगों का भला हुआ है।
मेडिकल कैम्प्स का आयोजन होता है
मेडिकल कैम्प्स की सहायता से गाँव में तरह तरह के प्रोग्राम्स का आयोजन होता है जिससे गाँव के लोगों को मेडिकल सम्बंधित जानकारियों से अवगत कराया जाता है।
ट्रैन के सब ही डब्बों में ऐ सी की सुविधा है। चलती ट्रैन में पैथोलॉजी लैब, मैमोग्राफी यूनिट, गयनेकोलोजी एग्जामिनेशन रूम, डेंटल यूनिट, फारमेसी, पावर जनरेटर और एक पैंट्री मौजूद है। यह एक आश्चर्य करने वाली बात है!
दिसंबर 2016 में जीवन रेखा एक्सप्रेस पर पहली बार किसी कैंसर पीड़ित मरीज़ का सफलता से इलाज हुआ था। हिरा लाल लोधी पहले ऐसे मरीज़ थे। ग़रीबी से जूझ रहे ऐसे व्यक्ति के लिए यह सहायता एक उपकार बराबर ही थी।
आज भी जब जीवन रेखा एक्सप्रेस आती है तो देश के तमाम लोग हाथ में फूल लिए डॉक्टर्स का स्वागत करती है।
भारत जैसे देश के लिए यह एक बहुत बड़ा उपकार है।