भारत एक ऐसा देश है जहाँ कई जाती-धर्म के लोग प्यार से मिलजुलकर रहते हैं और अपने रिवाज़, परम्पराओं का पालन करते हैं . इसके साथ ही भारत में ऐसी कई जगह है जहाँ पड़ोसी देशों के रिवाज़, परम्पराओं और विचारों का आदर किया जाता हैं. “अतिथि देवो भवः” – मतलब अतिथि भगवान जैसा होता है. इस मूल्य के साथ हम आज भी ऐसे समाज में जी रहे है जिनके पूर्वज ब्रिटिशों ने यहाँ लाये थे.
जानते है कोलकाता में बसे ऐसे ही चीनी समुदाय के बारे में जिन्हे ब्रिटिशों ने यहाँ छोड़ा था, फिर भी वे भारत को अपना घर मानते है. कोलकाता के अचिपुर में चीनी-भारतीयों का 2000 लोगों का सबसे बड़ा समुदाय है.
चीन से अचीपुर तक की यात्रा
1732-1818 के दरम्यान जब वॉरेन हेस्टिंग्स ब्रिटिश भारत के पहले गवर्नर-जनरल थे, तब कई चीनी लोग काम की तलाश में कोलकाता आए थे.उन्ही में से एक चाय व्यापारी यांग दाज़ो ( एटशेव ) ने जमीन एक टुकड़े के लिए अपील की और उसे जमीन मिली. 1778 में वारेन हेस्टिंग्स ने चीनी संयंत्र के साथ एक शुगर मिल की स्थापना की. शुगर मिल में चीनी मजदूरों को काम करने के लिए कमीशन दिया गया. तब से वह जगह अचीपुर के नाम से जानी जाती है
कोलकाता में आज भी, टोंग एटशेव की घोड़े की नाल के आकार की कब्र है जो चीनी समुदाय के लिए एक धार्मिक स्थल है.
भारत में 5000-7000 चीनी रह रहे हैं
-२०१५ के सर्वे नुसार 5000-7000 चीनी भारत में रहते है
-एक समय था जब Grace Ling Liang इंग्लिश स्कूल में पढ़ने वाले लगभग 90% छात्र चीनी मूल के थे.
-कोलकाता में रहने वाले चीनी समुदाय का अपना अखबार है, जिसे ‘The Overseas Chinese Commerce in India’के नाम से जाना जाता है।
-यहाँ Chinese New Year, Hungry Ghost Festival and Moon Festival धूमधाम से मनाया जाता है।
चीनी लोगों का व्यवसाय
-जब चीनी भारत आये थे तब वे अपने पारंपरिक कौशल के साथ आए थे . इन लोगों ने भारत में ऐसे व्यवसाय शुरू किए, जिनके बारे में स्थानीय लोगों ने कभी सोचा भी नहीं था.
यह चीनी पैसे कमाना सिख चुके थे , परंतु वे आर्थिक दृष्टि से अंग्रेजों से नीचे खड़े होना पसंद करते थे.एक समय ऐसा आया जब चीनियों ने भी स्थानीय लोगों को अंग्रेजों की तरह ही रोजगार देना शुरू किया. मात्र अंग्रेजों खुद के प्रॉफिट के बारे में सोचा और चीनी ने कोलकाता को अपना घर माना.
क्या भारत में चीनी आबादी गायब हो जाएगी –
– एक समय था जब कोलकाता 20,000 से ज्यादा चीनी लोगों घर था , अब यह संख्या घटकर 2,000 हो गई है.इसकी वजह है कई भारतीयों की तरह ही चीनी यंगस्टर्स विदेश में पढ़ना और बसना पसंद करते हैं.एक तरफ कोलकाता में चीनी समुदाय की संख्या घट रही है तो दूसरी तरफ मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और बैंगलोर जैसे शहरों में चीनी आबादी बढ़ रही है।
मुंबई के पवई को चीनी-भारतीयों के “आगामी हब” के रूप में जाना जाता है . जहां 400 चीनी परिवार रहते हैं जिनका हम स्वागत करते हैं.