मंदिर के गुम्बद पर चाँद की आकृति
साल 1718 की बात है जब आलिया बेग़म लखनऊ के अलीगंज में एक इमारत का निर्माण करा रहीं थीं। खुदाई के दौरान मजदूरों को भगवान हनुमान की दो मूर्तियां मिलीं जिसे बेग़म आलिया ने वही रखवा दिया था। उसी रात को बेग़म आलिया को ख़्वाब आया जिसमें सन्देश था कि भगवान हनुमान की मूर्तियों को स्थापित करने पर बेग़म को बीटा नसीब होगा। कुछ ही दिनों में मूर्तियों कि स्थापना हुई जो ‘पुराना हनुमान मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। आलिया बेग़म को बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने ने ‘मंगत राय फ़िरोज़ शाह’ रखा। मंदिर के गुम्बद पर चाँद की आकृति मौजूद है जो हिन्दू-मुसलमान की एकता का प्रतीक है।
400 साल पुराना मंदिर
अगर आपको ऐसा लग रहा है कि ‘नया हनुमान मंदिर’ सच में नया है तो वह आपकी ग़लतफ़हमी है। नया हनुमान मंदिर तक़रीबन 400 साल पुराना है। साल 1752 की बात है, आलिया बेग़म का कमांडर दूसरी मूर्ति को हाथी पर सवार कर स्थापना की ओर बढ़ रहे थे कि हाथी एक जगह बैठ गया और उठने से इंक़ार किया। जिस जगह पर हाथी बैठा था, उस जगह पर दूसरो मूर्ति को स्थापित किया और ‘नया हनुमान मंदिर’ का नाम दिया।
8,000 से ज़्यादा भक्त भगवान हनुमान के दर्शन करने आते हैं
मंदिर की स्थापना के बाद वहाँ पूजा अर्पित की गई जो ज्येष्ठ महीने का पहला मंगलवार था। तबसे ज्येष्ठ महीने का पहला मंगलवार ‘बड़ा मंगल’ के नाम से जाना जाता है। यह एक अनोखा त्यौहार है जो पूरे भारत में सिर्फ लखनऊ में पिछले 400 मनाया जा रहा है। ज्येष्ठ महीने के पहले मंगलवार से लेकर आख़िरी मंगलवार ‘बड़ा मंगल’ के नाम से मनाया जाता है जहाँ तक़रीबन 8,000 से ज़्यादा भक्त भगवान हनुमान के दर्शन करने आते हैं।
हिन्दुओं के साथ साथ मुसलमान भी मनाते हैं
बड़ा मंगल एक ऐसा त्यौहार जिसे हिन्दुओं के साथ साथ मुसलमान भी मनाते हैं। बड़ा मंगल के नाम पर पूरे लखनऊ शहर में लंगर लगा रहता है जहाँ सड़क चलते हर इंसान को मुफ्त में भोजन मिलता है। भगवान हनुमान के नाम पर लखनऊ के निवासी यह त्यौहार सदियों से मना रहे हैं जो हिन्दू मुसलमान की एकता का प्रतीक है। लखनऊ में मुसलामानों की संख्या 26.36 % है , इतनी भारी संख्या होने के बावजूद भी लखनऊ में आज तक हिन्दू-मुसलमान के बीच कोई दंगे नहीं हुए। है ना आश्चर्य वाली बात!