“गणपति बप्पा, मोरया!” – जोश काफी ज़्यादा हो जाता है न? सालों से ये नारा लगता आ रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं इसका अर्थ क्या है?
हम सब ही “गणपति बप्पा” के मतलब से वाक़िफ़ हैं, पर “मोरया”? ज़्यादातर लोगों को “मोरया” का अर्थ ही नहीं मालुम। हो सकता है आप भी न जानते हो कि मोरया कौन थे, लेकिन पुणे से 18 किलोमीटर की दूरी पर चिंचवड़ नाम की जगह पर बच्चा बच्चा भी इस नाम से वाक़िफ़ है!
तो आज हम इस विषय पर बात करेंगे!
कौन हैं मोरया ?
मोरया गोसावी, 14th शताब्दी का सबसे बड़े गणेश भक्त थे। उनकी भक्ति के चर्चे पेशवाओं तक पहुँच चुके थे। उन्हीं के नाम पर मोरया गोसावी समाधि मंदिर बना है जहाँ करोड़ों भक्त गणपति बप्पा के दर्शन करने आते हैं। मोरया गोस्वामी ने ख़ुद इस मंदिर की स्थापना करी थी।
ऐसा कहा जाता है कि मोरया गोसावी हर गणेश चतुर्थी चिंचवड़ से पैदल 95 किलोमीटर चल कर मयूरेश्वर मंदिर में भगवान गणेश के दर्शन करने जाते थे। उनकी यह आस्था बचपन से ले कर 117 साल तक चली। उम्र ज़्यादा हो जाने के कारण से उन्हें मयूरेश्वर मंदिर तक पैदल जाने में काफी दिक्कतें आने लगी। और तब ही एक दिन, गणपति उनके सपने में आए।
स्नान करोगे, तो मुझे पाओगे!
कहा जाता है कि सपने में मयूरेश्वर जी आए और कहा “स्नान करोगे, तो मुझे पाओगे।” मोरया गोसावी जब कुंड से नहाकर बाहर निकले तो उनके हाथों में मयूरेश्वर गणपति की एक छोटी सी मूर्ति थी। उस मूर्ति को लेकर वो चिंचवड़ आए और उसे स्थापित कर के वहाँ पूजा-पाठ की शुरुवात कर दी। इस भक्ति की चर्चा दूर-दूर तक फैलने लगी। महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि भारत के दूसरे राज्यों तक ये बात फैली, और लोग मयूरेश्वर गणपति के दर्शन करने के लिए आने लगे।
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में लोग सिर्फ गणपति बप्पा ही नहीं बल्कि, गणपति बप्पा के सबसे बड़े भक्त, मोरया के दर्शन और आशीर्वाद लेने आते थे। अपनी इसी अटूट आस्था के कारण गणपति बप्पा और मोरया, साथ में ही बोला जाता है!