लंदन के साइंस म्यूज़ियम में कुछ ऐसे रॉकेट्स रखे हैं जिन्हे अँग्रेज़ 18वीं शताब्दी में भारत से ब्रिटिश ले आए थे।अंग्रेज़ों को यह रॉकेट्स इतने पसंद आए कि उन्होंने इन रॉकेट्स का इस्तेमाल नेपोलियन के ख़िलाफ़ भी किया। साइज़ में दिवाली के रॉकेट से थोड़े ही लम्बे यह रॉकेट्स, टीपू सुल्तान के थे। टीपू सुल्तान 18वीं शताब्दी में मैसूर का शासक थे। क्या आप जानते हैं कि टीपू सुल्तान के इन्ही रॉकेट्स ने भविष्य में आने वाले ‘रॉकेट साइंस’ की नींव रखी?
तो आइए आज हम दुनिया के सबसे पहले मिसाइल मैन, टीपू सुल्तान और उनके रॉकेट्स के बारे में बात करते हैं!
यहाँ रखे हैं चुराए हुए लॉन्चर्स!
लोहे से बने इन रॉकेट्स की रेंज 2 किलोमीटर तक की थी। अपने पिता, हैदर अली के बनाये हुए रॉकेट्स को सुधार कर टीपू सुल्तान ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जंग लड़ी। ऐसे रॉकेट लॉन्चर्स का इस्तेमाल किया जो एक बार में तीन रॉकेट्स को लॉन्च कर सकता था। उस ज़माने की यह ऐसी तकनीक थी जो अंग्रेज़ों ने कभी नहीं देखी थी।
हैदर अली की तकनीक को अंग्रेज़ कभी समझ न सके। दक्षिण भारत के सभी शासकों ने अंग्रेज़ों से हार मान ली थी। पर हैदर अली शेर की तरह लड़ा। हैदर अली की अकाल मृत्यु के बाद सेरिंगपट्नम का राज्य टीपू सुल्तान के हाथों में आया। चौथी एंग्लो-मैसूर के युद्ध में टीपू सुल्तान पराजित हुए।
युद्ध जीतने के बाद ब्रिटिश ने टीपू सुल्तान के सारे हथियार ज़ब्त कर लिए। तक़रीबन 600 रॉकेट लॉन्चर्स, 700 रॉकेट्स और 9,000 ऐसे रॉकेट्स जिनमें इंजन नहीं थे। यह सारे हथियार ब्रिटैन भेज दिए गए। ब्रिटिश के रॉयल अर्टिलरी में आज भी टीपू सुल्तान के रॉकेट लॉन्चर्स मौजूद हैं।
यह उस समय की बात है जब ब्रिटैन और फ्रांस में युद्ध छिड़ा हुआ था। अंग्रेज़ों ने यह हथियार नेपोलियन बोनापार्ट के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर जंग जीती थी।
सिर्फ यही नहीं, टीपू सुल्तान के सारे आभूषण, तलवार और तोप अँग्रेज़ अपने देश ले गए। साल 2015 में ब्रिटिश ने टीपू सुल्तान की तलवार 21 करोड़ में और तोप 14 करोड़ में नीलाम करी।