उत्तराखंड के एक छोटे से गांव के निवासी, विद्यादत्त शर्मा की कहानी ने ऑस्कर्स तक का सफर तय कर लिया है। एक 83 साल के बूढ़े किसान की समय सारणी ने ना सिर्फ विद्यादत्त शर्मा की ज़िन्दगी को दर्शाया है बल्कि एक किसान की ज़िन्दगी से जुडी वो हर छोटी परेशानी को बड़े परदे पर ला कर खड़ा कर दिया है।
मोतीबाघ नाम की 60 मिनट की मूवी ने विद्यादत्त शर्मा की परिस्थितियों को दिखा कर एक किसान की ज़िन्दगी का वर्णन किया है। 83 साल की उम्र में भी विद्यादत्त शर्मा अपनी 5 एकर की ज़मीन को ज़िंदा रखने के लिए किस तरह की महनत करते हैं, यह आश्चर्य करने वाली बात है।
उत्तराखंड के मुख्य मंत्री ने निर्मल चन्दर डंडरियाल को इस सफलता के लिए उनकी प्रशंसा की। उनका मानना है कि इस डॉक्यूमेंटरी से प्रेरित हो कर गाँव के युवा यहीं रह कर उन्नति के ओर कदम उठाएंगे। उनका यह भी मानना है की मोतीबाग डॉक्यूमेंटरी के ज़रिये माइग्रेशन पर भी प्रभाव पद सकता है।
डॉक्यूमेंटरी में नेपाल से आए हुए किसानों के साथ हुए भेद-भाव को भी दर्शाया गया है। जबकि नेपाल के किसानों की महनत से ही पूरे उत्तराखंड को अनाज नसीब होता है। इतने परिश्रम के बाद भी अगर भेद भाव हो, तो ठेस तो पहुँचेगी ही ना!
इस डॉक्यूमेंटरी में एक किसान की व्यथा को दर्शाने से ले कर माइग्रेशन जैसी परेशानियों को दिखाया गया है। यह भारत के दो एहम हिस्से हैं। भारत एक ऐसा देश है जो “जय जवान, जय किसान” में विश्वास रखते हैं, यह और ज़रूरी है कि भारत में किसानों की दशा में परिवर्तन लाया जाए!