क्या आप मेरा विश्वास करेंगे अगर मैं आपको ताज महल बेचूँ? अभी सुन कर तो बड़ा ही अटपटा लग रहा होगा लेकिन कुछ दशकों पहले एक आदमी ने यह कारनामा कर दिखाया था!
एक ऐसा आदमी, जिसने बड़ी ही चालाकी और तेज़ दिमाग से लोगों को बेवकूफ बना कर ताज महल बेचा, एक बार नहीं, बल्कि तीन-तीन बार!
आज हम आपको भारत के सबसे बड़े 420 से मिलवाएँगे, नाम तो सुना ही होगा! नटवर लाल? ये वही नटवरलाल हैं जिनसे प्रेरित हो कर अमिताभ बच्चन की मिस्टर नटवरलाल और इमरान हाश्मी की राजा नटवरला मूवी रिलीज़ हुई थीं।
कौन था नटवर लाल?
नटवरलाल का असली नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव था। और यह बिहार के सिवान डिस्ट्रिक्ट का रहने वाला था। आप शायद चौंक जाएँ यह सुन कर कि वो पेशे से वक़ील था! तक़रीबन 50 फर्जी नामों से लोगों को बेवकूफ बना कर इतने फ्रॉड किये हैं कि वो आज भी याद किया जाता है। टाटा, बिरला, मित्तल , अम्बानी, यह मशहूर बिज़नेस टायकून्स इसके जाल में फँस चुके हैं! सरकारी कर्मचारी बन कर इसने बहुत से विदेशियों को यह सारे मॉन्यूमेंट्स बेचने के झांसे दिए। बड़े बड़े बिजिनेस मैन को ख़ुद को सोशियल वर्कर बता कर पैसे ठग कर भाग जाता था।
नटवर लाल के कितने नाम थे?
लोगों को ठगने के लिए आईडिया वह नॉवेल से पढ़ कर लेता था। ऐसा कहा जाता है कि नटवरलाल के 52 नाम थे! ये हिस्टोरिकल मॉन्यूमेंट्स बेचने से पहले ये डुप्लीकेट सिग्नेचर करने में माहिर था। इसी कला से उसे यह लगा कि वह आगे इस काम में बहुत तरक्की पाएगा। आप शायद विश्वास न करें, पर नटवरलाल ने तीन बार ताज महल, दो बार लाल किला, एक बार राष्ट्रपति भवन और एक बार संसद भवन बेचा। राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के फर्जी साइन कर के नटवर लाल ने संसद को बेच दिया था और संयोग से उस समय सारे सांसद भवन में ही मौजूद था!
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113 साला कि सज़ा सुनाई गई थी!
यह शातिर दिमाग 9 बार गिरफ्तार हुआ था लेकिन हर बार पुलिस को उल्लू बना कर फरार होने में सफल होता था। उसे 14 फ्रॉड केस में 113 साला कि सज़ा सुनाई गई थी। जिसमें से उसने सिर्फ 20 साल ही जेल में बिताया। आख़िरी बार जब वह गिरफ्तार हुआ था तब वह 84 साल का था । मानना पड़ेगा, 84 साल कि उम्र में भी इंसान भाग निकला। जहाँ लोगों को इस उम्र में उठ कर एक गिलास पानी पीने में दिक्कत होती है, यहाँ यह आदमी जेल से ही भाग गया और वो भी व्हीलचेयर पर! बस वही आख़िरी बार उसे देखा गया था, उसके बाद से उसे कभी नहीं देखा गया।
420 नटवर लाल ख़ुद को रोबिन हुड मानता था। वह ऐसा बताता था कि लूटे हुए पैसों से वह ग़रीबों की मदद करते थे। उसे ऐसा फ्रॉड करने में कोई शर्मिंदगी नहीं महसूस होती थी।
इस पर भी कोई ठोस सबूत नहीं!
नटवरलाल के वक़ील ने 2009 मे कोर्ट में अर्ज़ी डाली थी कि नटवरलाल की मृत्यु 25 जुलाई 2009 को चुकी है इसलिए यह केस बंद कर दिया जाए। पर नटवरलाल के भाई का कहना था कि नटवरलाल का अंतिम संस्कार साल 1996 रांची में हो चुका है।
नटवरलाल कि मृत्यु हो चुकी है, इसका कभी कोई ठोस सबूत नहीं मिला। पर मानना पड़ेगा, इतना शातिर ठग शायद ही भारत में होगा!