यू पी 32 में एहतिराम बरत कर चलिएगा मियां, यहाँ के लोगों को नफासत बहुत पसंद है! नज़ाकत और तहज़ीब से भरा यह शहर, कबाब और चिकन कारी के लिए बेहद मशहूर है, हम बात कर रहे हैं शान-ए-अवध की, लखनऊ की!
आज हम लखनवी चिकन के बारे में बात करेंगे !
सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर हैं लखनवी कुर्ते। कपड़े पर सुई-धागे से की गई महीन कारीगरी को चिकनकारी कहते हैं। लखनऊ शहर, अपने कुर्तों के लिए दुनिया में मशहूर है। अपनी विशिष्टत्ता की वजह से यह आर्ट सैकड़ों सालों से चली आ रही है और आज भी लोगों में बहुत ही लोकप्रिय है।
चिकन भारत में कैसे आया?
चिकन शब्द फ़ारसी भाषा के ‘चाकिन’ शब्द से लिया गया है। जिस तरह मुग़लों ने भारत की कला संस्कृति, को समृद्ध किया, उसी तरह चिकनकारी भी मुग़लों की ही दें है। ऐसा माना जाता है कि नूर जहां इसे ईरान से सीख कर आयी थीं। कुछ लोगों का मानना है कि नूर जहां की दासी, बिस्मिल्लाह जब दिल्ली से लखनऊ आयी तो उसने अपने इस कला का प्रदर्शन किया था। नूर जहां को यह इतना पसंद आया की उसने अपनी दासी से यह कला सीखी और आगे बढ़ाया।
लखनवी चिकन का कारोबार
लखनऊ में चिकनकारी से सालाना तक़रीबन 4 हज़ार करोड़ रूपए तक का व्यापार होता है। इस पेशे में क़रीब 20 हज़ार से ज़्यादा लोग जुड़े हैं।
नवाबों का शहर चिकनकारी एक्सपोर्ट कर के 2 अरब रूपए से अधिक फॉरेन करेंसी कमा लेता है।
ब्रश से आर्ट करना तो आम बात है। लेकिन वहीँ अगर सुई धागे पर हाथ से कपड़े पर महीन काम किया जाए, तो वो थोड़ा रोचक हो जाता है।
चिकन में लगभग 40 तरह के टाँके और जालियां होती हैं। जिसमें से नुकीली मुर्री सबसे महंगी होती है। एक चिकनकारी का कुरता बहुत वक़्त और म्हणत मांगता है, इसलिए यही कारण है की वह आम कपड़ों से काफी महंगा आता है। एक चिकन के लहंगे को पूरा करने में तक़रीबन आठ से दस महीने लग जाते हैं!
चिकनकारी की विशेष शैली
चिकनकारी लखनऊ की एक खासियत है, शायद यही वजह है कि लखनऊ को चिकनकारी का केंद्र भी कहा जाता है। लखनऊ में चिकनकारी का काम पुराना लखनऊ में होता है।वहां से कुर्ते बन कर शहर में आते हैं। इसकी ख़ास बात यह है की इसमें 95 प्रतिशत महिलाऐं काम करती हैं। इस आर्ट का एक ख़ूबसूरत सैंपल लंदन के रॅायल अल्वर्ट म्यूजियम में भी रखा गया है जो की भारत के संस्कृति के बारे में और जानकारी देता है।
ऐसा माना जाता है की चिकनकारी बहुत विकसति नहीं हो पा रहा है। उसके पीछे एक ही कारण है।
चूँकि यह नक्काशी सिर्फ हाथ से ही करि जाती है, इसमें बहुत म्हणत और वक़्त लगता है। जिसकी वजह से यह बहुत महंगा कपडा होता है और भारत में सब इसे नहीं ख़रीद पाते हैं।
चिकनकारी भारत की संस्कृति को दर्शाती है। चिकन भारत और विश्व में अपनी जगह बना चुका है और हम आशा करते हैं कि यह कायम रहे।
इस संस्कृति को कायम रखने के लिए सरकार का भी योगदान बहुत ज़रूरी है!