टाइम एक ऐसा कॉन्सेप्ट है जिसे अब तक कोई समझ नहीं पाया है. ये एक ऐसा कांस्टेंट है जो लगातार बदलता रहता है. इसे हम नांप नहीं सकते पर इसकी मौजूदगी को नाकार भी नहीं सकते. टाइम- जो हमारे होने का सबूत है. तो क्या सब टाइम पर निर्भर करता है? क्या टाइम ही वो सच है जिसे सब खोज रहे हैं? अगर टाइम ही हमारे होने का सच है तो क्या इसमें कोई बदलाव मुमकिन है? क्या टाइम में हम वापस जाकर कुछ बदलाव कर सकते हैं, टाइम को रोक सकते हैं?
क्या है टाइम ट्रैवल !
अगर आपसे कहा जाए कि हम सभी टाइम ट्रैवल करते हैं, क्या आप इसे मानेंगे? कहा जाए कि हम पिछले साल से इस साल तक टाइम ट्रैवल कर के आए हैं? अब शायद इस बात पर यकीन करना मुमकिन हो सकता है. आइंस्टीन की “थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी” के अनुसार टाइम एक रिलेटिव कॉन्सेप्ट है. थ्री-डायमेंशनल स्पेस में चौथा डायमेंशन टाइम को माना जाता है. स्पेस के तीन डायमेंशन लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई है, टाइम एक चौथा डायमेंशन ‘डायरेक्शन’ देता है.
आइंस्टीन की थ्योरी के अनुसार टाइम जल्दी या धीमे चल रहा है, इस बात का अंदाज़ा आप सिर्फ़ तब लगा सकते हैं जब आप किसी और चीज़ के रिलेटिव मांपे. लाइट की स्पीड से माँपे तो एक स्पेसशिप में बैठा व्यक्ति अपने जुड़वा के मुकाबले देर में बूढ़ा होगा. यह इफ़ेक्ट “टाइम डाइलेशन” के नाम से जाना जाता है और इसके अनुसार हर एस्ट्रोनॉट टाइम ट्रैवलर कहलाएगा.
टाइम ट्रैवल: क्या पास्ट में कर सकते हैं ट्रैवल
टाइम ट्रैवल के कई पैराडॉक्स फेमस हैं जैसे कि “टेम्पोरल पैराडॉक्स” या “ग्रैंडफादर पैराडॉक्स “. साइंटिस्ट के अनुसार टाइम में पीछे जाना (पास्ट में जाना) मुश्किल है पर फ्यूचर में जाना ज़रूर पॉसिबल है. पास्ट में जाने के कई नुक्सान है जैसे कि “इफ़ेक्ट का कॉज़ से पहले होना”. इसे “ग्रैंडफादर पैराडॉक्स” के नाम से भी जानते हैं. इस पैराडॉक्स के अनुसार अगर आप पास्ट में जाकर अपने ग्रैंडफादर को जान से मार देते हैं तो आपकी प्रेजेंट में मौजूदगी पर ही सवाल उठ जाएगा.
कुछ सलाहकारों का मानना यह भी है कि फ्यूचर टाइम ट्रैवलर अपने पास्ट में जाकर भी पहले जैसे ही फैसले लेगा. वह ये पास्ट पहले जी चूका है और आज उसका फ्यूचर जो है वो नहीं बदलेगा. इन थ्योरीस के अनुसार तो यही साबित होता है कि टाइम में आप सिर्फ अपने “भविष्य” में जा सकते हैं “भूत” में नहीं.