समय भागता है और इस समय के पीछे हम. कहीं पहुँचने की हड़बड़ी में कितनी ही बार हम ट्रैफिक सिग्नल का उल्लंघन कर आगे बढ़ जाते हैं और फिर चालान भरना पड़ता है. पर क्या आपने कभी यह सोचा है जिस सिग्नल पर आपका चालान कट रहा है वहां सिग्नल होना भी चाहिए या नहीं?
सिग्नल का काम सिर्फ़ ट्रैफिक को मैनेज करना ही नहीं बल्कि प्रदुषण को भी संतुलित रखना होता है. ट्रैफिक की आवा जाहि को संतुलित रखने के लिए सिग्नल्स को एक अल्गोरिथम के ज़रिये संचालित किया जाता है. नियमों के अनुसार अगर आप 45 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से गाडी चला रहे हैं और आपको पहला सिग्नल हरा मिलता है तो उसके बाद के आने वाले जितने भी सिग्नल हैं, वो सब आपको हरे ही मिलने चाहिए. परन्तु यह हम सब जानते हैं की ऐसा नहीं होता है. मतलब अल्गोरिथम या तो सही डिजाईन नहीं हुई या काम नहीं कर रही.
सिग्नल कहाँ डिजाईन होगा, रोटरी कहाँ बनेगी और फ्लाईओवर कहाँ बनेगा इसके भी नियम हैं. जिनके अनुसार जिन चौराहों पर 2000 से 6000 कारों का आवागमन होता है वहां पर एक रोटरी बनना चाहिए. इस रोटरी की गुलाई 12 मीटर होनी चाहिए. यह 12 मीटर इसलिए होती है क्योंकि एक बस की लम्बाई इतनी ही होती है और वो आसानी से इस रोटरी से घूम सकती है. परन्तु हमारे यहाँ रोटरी को प्रतिमाएं बनाने के उपयोग में लाया जाता है.
इसी प्रकार जब गाड़ियों की मात्र 6000 से 12000 के बीच होती है तो वहां एक सिग्नल आता है. जब गाड़ियाँ 12000 से अधिक हों तब एक फ्लाईओवर. अर्थात सबसे पहले रोटरी फिर सिग्नल और अंत में फ्लाईओवर की बदौलत ट्रैफिक मैनेज करा जाता है. इस सिनक्रोनाइसेशन में ही ये डिजाईन होना चाहिए. परन्तु हमारे भारत में इस बात को नज़रंदाज़ कर अपने हिसाब से सिग्नल बनाए गए हैं.
ऐसे ही एक नियम के अंतर्गत आपका चालान सिर्फ़ सब इंस्पेक्टर काट सकता है परन्तु यह नियम भी कोई नहीं मानता. अगर ऐसा नहीं होता है तो आप चालान को कोर्ट में चैलेंज भी कर सकते हैं. अपना निजी स्वार्थ और रिश्वतखोरी में हम नियमों जैसी चीज़ों का पालन नहीं कर रहे.
ट्रैफिक सिग्नल का कार्य हमारी मुसीबतें बढ़ाना नहीं बल्कि कम करना हैं. ज़रूरी है की हम सभी एक जागरूक नागरिक बन नियमों का पालन करें और अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी को बहतर बनाएं.