बच्चों से लेकर बड़ों तक पतंगबाज़ी हर किसी का पसंदीदा खेल है. एशिया के बहुत से देशों में बड़े धूम-धाम से काईट फेस्टिवल भी मनाया जाता है. पर क्या आपको पता है पतंग से किस तरह के कारनामे कर सकती है ? आज हम एक ऐसे शख़्स के बारे में बात करने जा रहे हैं जो पतंग के ऊपर कैमेरा लगाकर तस्वीरें खींचते हैं और ऐसा अविष्कार करने वाले पहिले भारतीय शख़्स हैं.
मूल रूप से गुजरात के मगर अभी मुंबई में रहने वाले दिनेश मेहता भारत के पहले ‘एरियल काईट फोटोग्राफर’ हैं. वह पतंग पर कैमरा लगाकर उससे तस्वीरें खींचते हैं. इन तस्वीरों को देखकर लगता है कि ये ड्रोन से ली गई हैं. दिनेश पेशे से आर्किटेक्चर हैं. पढ़ाई के दौरान उन्हें पुरानी इमारतों और साइट्स आदि का बर्ड-आई व्यू का महत्व समझ में आया. आर्किटेक्चर, टाउन प्लानर या फॉरेस्ट डिपार्टमेंट जैसे लोगों के लिए एरिअल शॉट्स लेना काफी कठिन होता है खासकर तब जब आपके पास खुद का हेलीकॉप्टर ना हो. तभी दिनेश ने एक अलग किस्म की फोटोग्राफी ट्रिक खोज निकाली. एक तरफ पतंग उड़ाने का मज़ा और दूसरी तरफ फोटोग्राफी.
ऐसे हुई इसकी शुरुआत
इसकी असली शुरुआत तब हुई जब दिनेश किसी काम से पगौड़ा गए थे और तब उनकी मुलाक़ात एक फ्रेंच आर्कियोलॉजिस्ट से हुई. इस शख्स को काईट फोटोग्राफी करते देख दिनेश प्रभावित हुए और उनके साथ ही काम करना शुरू कर दिया. पर दिनेश के लिए यह सफर इतना आसान नहीं था. शुरुआत में इनके कई कैमरे टूटे, पर हार ना मानकर इन्होंने अपनी फोटोग्राफी जारी रखी. इसी दौरान कई सारे तरकीबें अपनाकर इन्होंने अविष्कार किए . काइट से ली जाने वाली तस्वीरें हेलिकाप्टर और ड्रोन से ली गई तस्वीरों से काफी अलग होती हैं.
ऐरियल फोटोग्राफी की शुरुवात सन 1906 में हुई जब जॉर्ज रेमंड लॉरेन्स नाम के शख्स ने पहली बार इसका प्रयोग किया. उस दौरान सैन फ्रांसिस्को में काफी बड़ा भूचाल आया था. उन दृश्यों को देखने के लिए जॉर्ज ने पहली बार ऐरियल फोटोग्राफी का प्रयोग किया था. लेकिन वह तस्वीरें पतंग के इस्तेमाल से ली थीं या एयर बलून से इसके बारे में कोई ठोस सबूत नहीं है.
यह पतंग आम पतंगों से अलग है
त्रिकोण आकार की यह पतंग कार्बन फाइबर से बनी होती है. इसमें स्ट्रोंग-लाइट प्लास्टिक नायलोन मटीरियल का इस्तेमाल होता है. पतंग का वज़न 50 से 100 ग्राम होता है. यह 200 से 1500 फीट ऊपर जाकर तस्वीरें खींचती हैं. इसकी डोर जिसे ड्रेकोन लाइन कहते हैं जिसके द्वारा यह पतंग उड़ाई जाती है. पतंग पर एक पेंडुलम फिक्स कर उसके ऊपर मोटर लगाई जाती है. इसे इंटरवल मोड पर रख कर कैमरे को धीरे-धीरे 360 डिग्री में घुमाया जाता है. इस तरह हर 5 सेकंद में एक तस्वीर खींची जाती है. इस पतंग को तैयार करने में 3 दिन से 7 दिन का समय लगता है. काईट फोटोग्राफी से दिनेश ने कई सारी वास्तु और हेरिटेज की तस्वीरें खींची जिनमे से कुछ प्रतिष्ठित हॉवर्ड मैगज़ीन में छप चुकी हैं. आज इनके पास गो प्रो, रिक्को, निकॉन , पैंकेटैक्स जैसे अलग-अलग फीचर के कैमरे हैं.
ड्रोन Vs पतंग
आज प्रचलित ड्रोन कैमरा का इस्तेमाल कर बड़ी आसानी तस्वीरें ली जा सकती हैं. लेकिन इसकी भी कुछ सीमाएं हैं. ऐसे ड्रोन कुछ ही अंतर तक उड़ाए जा सकते हैं और यह काफी महंगे भी होते हैं. मगर पतंग को आप आसानी से कितनी भी ऊंचाई तक उड़ा सकते हैं और इसके लिए खर्चा भी कम होता है. बस इसके लिए मौसम ठीक रहना चाहिए और पतंग उड़ाने की जानकारी.